google.com, pub-8725611118255173, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Swar Sandhi - स्वर संधि की परिभाषा ,भेद और उदाहरण - 2024

Swar Sandhi – स्वर संधि की परिभाषा ,भेद और उदाहरण

Swar Sandhi Kise Kahate Hain -(स्वर संधि किसे कहते हैं)

स्वर संधि को एक भाषा शास्त्रीय अर्थ में ‘स्वरों का मिलना’ कहा जाता है। यह ध्वनि की प्रकृति में होता है जब दो स्वरों का मेल होता है और वे एक साथ उच्चारित किए जाते हैं। स्वर संधि भाषा के शब्दों के अंतर्गत आती है और इसका मुख्य उद्देश्य शब्दों का उच्चारण सुखद बनाना होता है।

Swar Sandhi Ki Paribhasha- (स्वर संधि की परिभाषा)

Swar Sandhi Ki Paribhasha- (स्वर संधि की परिभाषा)
Swar Sandhi Ki Paribhasha- (स्वर संधि की परिभाषा)

स्वर संधि का अर्थ है वे नियम जिनमें दो वर्ण एक साथ मिलकर एक ही वर्ण का रूप धारण कर लेते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भाषा के शब्दों को सहज और सुगम बनाना होता है। यह व्याकरण के अध्ययन में उपयुक्त विषय है जिसमें विभिन्न स्वरों के संगत वर्णों का मेल होता है और वे वर्णात्मक संधि रूप धारण करते हैं।

Swar Sandhi Ke Kitne Bhed Hote Hain – (स्वर संधि के कितने भेद होते हैं)

स्वर संधि के दो प्रमुख भेद होते हैं:

स्वरादि संधि: इसमें एक शब्द के आखिरी स्वर और अगले शब्द के पहले स्वर का मेल होता है। उदाहरण के लिए, “आत्मा + अन्वेषण” का मेल “आत्मान्वेषण” होता है।

व्यंजनादि संधि: इसमें एक शब्द के अंतिम व्यंजन और अगले शब्द के पहले व्यंजन का मेल होता है। उदाहरण के लिए, “देव + उषा” का मेल “देवोषा” होता है।

ये दोनों ही स्वर संधि के मुख्य भेद होते हैं जो भाषा के व्याकरण में महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं।

Swar Sandhi Kitne Prakar Ke Hote Hain- (स्वर संधि कितने प्रकार के होते हैं)

Swar Sandhi Ke Kitne Bhed Hote Hain (स्वर संधि के कितने भेद होते हैं?)
Swar Sandhi Ke Kitne Bhed Hote Hain (स्वर संधि के कितने भेद होते हैं?)

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं:


दीर्घ संधि (Dirgha Sandhi)

जब दो स्वरों का मेल होने पर एक दीर्घ स्वर बनता है, तो दीर्घ संधि होती है।

उदाहरण के लिए, ‘राजा + इंद्र = राजेन्द्र’

गुण संधि (Guna Sandhi)

जब दो स्वरों का मेल होने पर एक गुण स्वर बनता है, तो गुण संधि होती है।

उदाहरण के लिए, ‘नर + ईश्वर = नारायण’

वृद्धि संधि (Vridhi Sandhi)

जब दो स्वरों का मेल होने पर एक वृद्धि स्वर बनता है, तो वृद्धि संधि होती है।

उदाहरण के लिए, ‘देव + ईश्वर = देवेश्वर’


यण संधि (Yan Sandhi)

जब “इ”, “ई”, “उ”, “ऊ”, या “ऋ” स्वर के बाद “अ”, “आ”, “इ”, “ई”, “उ”, “ऊ”, “ऋ”, या “ए” स्वर आता है, तो यण संधि होती है।

उदाहरण के लिए, ‘देव + ऋषि = देवर्षि’

अयादि संधि (Ayadi Sandhi)

जब “अ” स्वर के बाद “इ”, “ई”, “उ”, “ऊ”, “ऋ”, या “ए” स्वर आता है, तो अयादि संधि होती है।

उदाहरण के लिए, ‘अग्नि + ईश्वर = अग्निदेव’

Dirgh Swar Sandhi (दीर्घ संधि )

दीर्घ संधि स्वर संधि का एक प्रकार है, जो तब होता है जब दो स्वरों के मिलने से एक दीर्घ स्वर बनता है। इसे “दीर्घ” इसलिए कहते हैं क्योंकि परिणामस्वरूप बनने वाला स्वर एक दीर्घ स्वर होता है (जिसे अंग्रेजी में long vowel कहते हैं)।

दीर्घ संधि के नियम:-

  • पहले शब्द का अंतिम स्वर हो सकता है – ह्रस्व अ (a), इ (i), उ (u) या ऋ (ri).
  • दूसरा शब्द का प्रथम स्वर हो सकता है – ह्रस्व अ (a), इ (i), उ (u) या ऋ (ri).
  • दोनों स्वर मिलकर एक दीर्घ स्वर बनाते हैं, जो निम्न तालिका के अनुसार निर्धारित होता है:

Gun Swar Sandhi (गुण संधि)

गुण संधि स्वर संधि का एक प्रकार है, जो तब होता है जब दो स्वरों के मिलने से एक गुण स्वर बनता है। “गुण” शब्द का अर्थ है “गुणवत्ता” (quality), जो इस संधि के परिणामस्वरूप बनने वाले स्वर की विशिष्ट ध्वनि को दर्शाता है।

गुण संधि के नियम:-

  • पहले शब्द का अंतिम स्वर हो सकता है – ह्रस्व अ या आ
  • दूसरा शब्द का प्रथम स्वर हो सकता है – इ या ई .
  • दोनों स्वर मिलकर एक गुण स्वर बनाते हैं, जो निम्न तालिका के अनुसार निर्धारित होता है:
  • ध्यान दें कि गुण संधि केवल तभी होता है जब:

पहला शब्द “अ” या “आ” से ही समाप्त होता हो। अन्य स्वरों (इ, ई, उ, ऊ, ऋ) के साथ गुण संधि नहीं होता है।
दूसरा शब्द “इ” या “ई” से ही शुरू होता हो। अन्य स्वरों के साथ गुण संधि नहीं होता है।
गुण संधि हिंदी वर्तनी का एक महत्वपूर्ण नियम है। इसका सही प्रयोग शब्दों के उच्चारण और अर्थ को स्पष्ट करने में मदद करता है।

Vriddhi Swar Sandhi (वृद्धि संधि)

वृद्धि संधि स्वर संधि का एक प्रकार है, जो तब होता है जब दो स्वरों के मिलने से एक वृद्धि स्वर बनता है। “वृद्धि” शब्द का अर्थ है “वृद्धि” (increase), जो इस संधि के परिणामस्वरूप बनने वाले स्वर की ध्वनि में होने वाले परिवर्तन को दर्शाता है।

वृद्धि संधि के नियम:-

  • पहले शब्द का अंतिम स्वर हो सकता है – ह्रस्व अ (a) या आ (aa).
  • दूसरा शब्द का प्रथम स्वर हो सकता है – ए (e) या ऐ (ai).
  • दोनों स्वर मिलकर एक वृद्धि स्वर बनाते हैं, जो निम्न तालिका के अनुसार निर्धारित होता है:
  • ध्यान दें कि वृद्धि संधि केवल तभी होता है जब:

पहला शब्द “अ” (a) या “आ” (aa) से ही समाप्त होता हो। अन्य स्वरों (इ, ई, उ, ऊ, ऋ) के साथ वृद्धि संधि नहीं होता है।
दूसरा शब्द “ए” (e) या “ऐ” (ai) से ही शुरू होता हो। अन्य स्वरों के साथ वृद्धि संधि नहीं होता है।
वृद्धि संधि हिंदी वर्तनी में पाए जाने वाले सबसे सरल स्वर संधि में से एक है। इसका सही प्रयोग शब्दों के उच्चारण और अर्थ को बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।

Yan Swar Sandhi (यण संधि )

यण संधि हिंदी व्याकरण में स्वर संधि का एक महत्वपूर्ण नियम है। यह तब होता है, जब किसी शब्द के अंत में (aru – “aru”, meaning “is”) (i, ee), उ (u), ऊ (oo) या ऋ (ri) ध्वनियों के बाद कोई अन्य स्वर आता है।

इस स्थिति में, पहले शब्द के अंत में मौजूद स्वर में परिवर्तन हो जाता है और वह य, व, र अक्षरों में से किसी एक में बदल जाता है।

यण संधि के नियम

  • इ/ई के बाद कोई अन्य स्वर:

इ/ई का य हो जाता है।
उदाहरण

  • राजा + इंद्र = राजयिंद्र
  • गुरु + ईश्वर = गुरुयेश्वर

उ/ऊ के बाद कोई अन्य स्वर:

उ/ऊ का व हो जाता है।
उदाहरण

  • धर्म + उल्लास = धर्मवल्लास
  • गगन + उपवन = गगनव उपवन

ऋ के बाद कोई अन्य स्वर:

ऋ का र हो जाता है।

उदाहरण

  • मातृ + आदेश = मातृआदेश
  • कर्तव्य + अर्थ = कर्तव्यार्थ

ध्यान दें –

यदि इ/ई (i/ee) के बाद स्वर “अ” (a) आता है, तो वह ए (e) में बदल जाता है। यह यण संधि नहीं, बल्कि गुण संधि का उदाहरण है।

उदाहरण

  • धन + अधिकार = धनाधिकार
    यण संधि को पहचानने का एक आसान तरीका यह है कि संधि के बाद बने शब्द में आमतौर पर य, व या र अक्षर पाए जाते हैं।

यण संधि हिंदी भाषा को सुचारू रूप से बोलने और लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका सही प्रयोग शब्दों के उच्चारण और अर्थ को स्पष्ट करने में मदद करता है।

Ayadi Swar sandhi (अयादि संधि )-

अयादि संधि स्वर संधि का एक प्रकार है, जो तब होता है जब किसी शब्द के अंत में स्थित स्वर “अ” (a) के बाद कोई दूसरा स्वर आता है। इस स्थिति में, “अ” (a) का स्वर बदल जाता है।

अयादि संधि के नियम

  • “अ” (a) के बाद “इ” (i) या “ई” (ee) आता है, तो “अ” (a) का स्वर “अय्” (ay) में बदल जाता है।
  • “अ” (a) के बाद “उ” (u) या “ऊ” (oo) आता है, तो “अ” (a) का स्वर “अव्” (av) में बदल जाता है।
  • “अ” (a) के बाद “ऋ” (ri) आता है, तो “अ” (a) का स्वर “आर्” (aar) में बदल जाता है (हालांकि, आधुनिक हिंदी में आमतौर पर इसे “अर” (ar) ही लिखा जाता है)।
  • “अ” (a) के बाद “ए” (e) आता है, तो यह “अय्” (ay) में नहीं बदलता, बल्कि “अ” (a) ही रहता है।

उदाहरण

  1. अ + इ = अय्
  2. नर + इंद्र = नरयिंद्र
  3. शिव + ईश्वर = शिवयेश्वर
  4. अ + उ = अव्
  5. भो + उक्त = भवक्त
  6. महा + उपाध्याय = महावपाध्याय
  7. अ + ऋ = आर् [आधुनिक हिंदी में अर
  8. कर्म + ऋषि = कर्मऋषि
  9. धर्म + अर्थ = धर्मा अर्थ

अयादि संधि का नियम केवल पहले शब्द के अंत में स्थित स्वर “अ” पर लागू होता है। यदि किसी शब्द के बीच में “अ” है और उसके बाद कोई अन्य स्वर आता है, तो वह अयादि संधि नहीं होगा।


“अ”के बाद “ए” आने पर कोई परिवर्तन नहीं होता है। यह अपवाद है।


अयादि संधि हिंदी वर्तनी का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका सही प्रयोग सुगम और सार्थक वाक्य रचना में सहायक होता है।

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