Best Essay On Phati Pustak ki Atmakatha | फटी पुस्तक की आत्मकथा 400+ Words

फटी पुस्तक की आत्मकथा

फटी पुस्तक की आत्मकथा

“पुस्तकों में इतना खजाना छुपा है, जितना कोई लुटेरा कभी लूट नहीं सकता।”

          मैं पुस्तक हूँ। मेरा घर पुस्तकालय है। कुछ महिने पहले तो मै स्वच्छ तथा सुंदर देखता था। परंतु अत्यधिक समय होने के कारण अब में फटने लगा हूँ। मेरी जीवन कहानी फिल्मी कलाकारों की जिंदगी के समान रोचक व आकर्षक नहीं है, पर भाव से भरी है।

          मेरा बाहर का कवर फटने लगा है और अंदर के कुछ पेज बाहर आने लगे है। मेरी इतनी बुरी स्तिथि होने के बावजूद भी मुझे अच्छे से रखा गया है। मुझे पहले अच्छे से नहीं रखा तथा ध्यान नहीं दिया गया इसलिए मेरी हालत अब यह हो चुकी है। मेरे हर पेज खराब होते जा रहे है। जो पन्ने फूट गए है उस पन्नों का ज्ञान भी मेरे से निकलता जा रहा है। मैने शिक्षक तथा उनके विद्यार्थीयों को भी ज्ञान दिया ताकि वह अपने बच्चों तथा दूसरे विद्यार्थीयों को भी ज्ञान दे पाए।

          मुझे मनुष्य का एक स्वाभाव नहीं समझा, अगर कुछ काम हो तो अपने वह लिए मेरे से पन्ने फाड़ते है। सह सब होने के बाद मुझे एक पुस्तकालय के कोने में संभालकर रखा गया है। यह बड़ी आश्चर्य की बात है यह इंसान अब मेरे फटे हुए पन्नों को संभालकर रख रहे है मैं सोचने लगा की शायद मेरे मे कुछ खास बात होगी। लेकिन, उसी समय मैने अपने दोस्तों से सुना की यह मनुष्य हमारा उपयोग कई बार साफ – सफाई के लिए भी करते है।

          मैं जानता हू की मैं अब पुराना हो चुका हूँ, मेरा बहुत ‘इस्तेमाल हो चुका है तथा मे फ्रंट भी चुका हूँ। परंतु अगर मुझे कोई पुन: इस्तेमाल करना चाहे तो वह कर सकता है।

क्यों ! क्या हो गया ? आप तो उदास हो गए।
यह तो जिंदगी है
ये हमारी चाहतों से नहीं, अपने हिसाब से चलती है। 

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