Best Essay On Kisan ki Atmakatha | किसान की आत्मकथा 500 Words

किसान की आत्मकथा |Kisan ki Atmakatha in Hindi

किसान की आत्मकथा

“हम सिर्फ अपना घर ही नहीं पूरा देश चलाते है हम,

किसान है साहब हम मिट्टी का कर्ज चुकाते है।”

          भारत गाँवो का देश है और मैं उन्हीं गाँवो में रहता हूँ |लोग मुझे अन्नदाता, किसान, भूमिपुत्र कई नामों से जानते हैं और मेरा सन्मान करते हैं। सारे देशवासी मेरे द्वारा उगाया गया अन्न ग्रहण करके ही अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं। हम किसान दिन-रात मेहनत करके फसल उगाते है. लेकिन जब बारिश नहीं होती तब हमारा दिल दुःख से भर जाता है और हमारी मेहनत पर पानी फेर जाता है। कुछ समय ऐसा भी होता है कि ज्यादा बारिश की वजह से बाढ़ आ जाती है और पुरी खेती का नुकसान हो जाता है। हमें अपने खेती पर लगाए हुए पैसे फसल बिकने के बाद भी नहीं मिलते। हमें बहुत कम दाम में अनाज बेचना पड़ता है। आज के तकनिकी के युग के वजह से ऐसा हाल हो गया है कि चप्पल, कपड़े आदि चिजे मॉल मे बिक रही है लेकिन मेहनत से उगाया हुआ अनाज रस्तों पर बिक रहा है।

          मैं जब १३ साल का था तब से मेरे पिताजी को खेती करने में मदत करता था। मेरे पिताजी की आमदनी बहुत कम इसलिए मैं सिर्फ आठवीं कक्षा तक पढ सका, उसके बाद पिताजी से साथ खेती का काम सिखने लगा। मैं बड़ा हो गया और बहुत ही अच्छे घराने की लड़की से मेरी शादी हुई। वह मुझे हमेशा प्रेरित करती थी और खेती के कामों में मेरी सहायता करती थी। उसे खेती करना बहुत पसंद था। कुछ सालों बाद मेरे दो बच्चे पैदा हुए, उनके लिए मै खिलौने ज्यादा नहीं ला पाता पर दोनों मिलजुलकर खेलते है।

          थंडी का मौसम था और दिवाली का समय था। खेत में पूरी तरह से फसल अच्छी हो चुकी थी और अनाज अच्छे दाम से बिक् गया। घर में आनंदमय वातावरण था, मैंने मेरे बच्चो और बीवी के लिए नए कपड़े लिए, पटाखे लाए और घर में रोषणाई की । किसान होने के नाते दिल को बहुत ज्यादा तसल्ली मिली और किसान होने का पर गर्व हुआ।

          हम किसान हमारे जमीन और मिट्टी से बहुत प्यार करते है हमारे पास कोई सोना, चाँदी नही होती पर हमारे पास देश की मिट्टी है और वह हमारे लिए सबसे ज्यादा मूल्यवान है। हम किसान अगर खेतों में मेहनत नहीं लेंगे तो देश के लोग भूके रह जाएंगे। सरकार ने हमारे लिए बहुत सारी योजनाए बनाई है जिससे हमें बहुत सारे लाभ होते है। हमारे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने कहाँ था “जय जवान जय किसान, यानी जवान और किसान देश के आधारस्तंभ है।

          लेकिन बहुत सारे गावों में किसान फसल न उगने पर आत्महत्या कर रहे हैं और उनकी जमीनें बड़े- बड़े रस्ते या टॉवर बनाने के लिए इस्तमाल करते है। किसानों को समझना चाहिए की आत्महत्या करना योग्य उपाय नही है, देश पर और देश की जमीनों पर हम किसानो का पूरा अधिकार है और रहेगा।

“कठिन जेठ की दुपहरी में एक चित्त ही नग्न।

कृषक तपस्वी तप करता, है श्रम से स्वेदित तन।”

Leave a Comment