Types of Samas in Sanskrit
समास की परिभाषा – संक्षेप करना अथवा अनेक पदों का एक पद हो जाना समास कहलाता है। अर्थात् जब अनेक पद मिलकर एक पद हो जाते हैं तो उसे समास कहा जाता है।
- सीतायाः पतिः = सीतापतिः।
यहाँ ‘सीतायाः’ और ‘पतिः’ ये दो पद मिलकर एक पद (सीतापतिः) हो गया है, इसलिए यही समास है| समास होने पर अर्थ में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है। जो अर्थ ‘सीतायाः पतिः’ (सीता का पति) इस विग्रह युक्त वाक्य का है, वही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।
Samas ke Bhed (समास के भेद)
- अव्ययीभाव समासः Avyayebhav Samas
- तत्पुरुष समास: Tatpurush Samas
- कर्मधारयसमास: Karmadharaya Samas
- बहुव्रीहिसमासः Bahuvrihi Samas
- द्वन्द्वसमास: Dvandva Samas
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अव्ययीभाव समासः
जब विभक्ति आदि अर्थों में वर्तमान अव्यय पद का सुबन्त के साथ नित्य रूप से समास होता है, तब वह अव्ययीभाव समास होता है अथवा इसमें यह जानना चाहिए|
- प्रतिदिनम् (दिनं दिनं प्रति – प्रत्येक दिन)
- यथाशक्ति (शक्तिमनतिक्रम्य – शक्ति के अनुसार)
- उपकृष्णम् (कृष्णस्य समीपम् – कृष्ण के समीप)
- अनुरूपम् (रूपस्य योग्यम् – रूप में अनुकूल)
- अध्यात्मम् (आत्मनि अधि— आत्मा में)
- आजीवनम् (आजीवनात्- जीवनपर्यन्त)
तत्पुरुष समास:
उत्तरपदार्थप्रधानः तत्पुरुषः अर्थात जिस समास में उत्तरपद (पर) का अर्थ प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे- राजपुत्रः (राज्ञः पुत्रः – राजा का पुत्र)। इस पद में पूर्वपद ‘राजा’ प्रधान न होकर उत्तर पद ‘पुत्र’ प्रधान है, इसलिए यह तत्पुरुष समास हुआ। तत्पुरुष समास में दूसरा पद पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है। इसका विग्रह करने पर कर्त्ता व सम्बोधन की विभक्तियों (ने, हे ओ, अरे) के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपवेद होते हैं।
तत्पुरुष समास के अन्य भी छः भेद है- द्वितीया तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष , चतुर्थी तत्पुरुष, पंचमी तत्पुरुष षष्ठी तत्पुरुष और सप्तमी तत्पुरुष
- द्वितीया तत्पुरुष– जिस तत्पुरुष समास का पूर्वपद द्वितीयान्त हो उसे द्वितीय तत्पुरुष कहते है।
- तृतीया तत्पुरुष– जिस तत्पुरुष समास का पूर्वपद तृतीयान्त हो उसे तृतीया तत्पुरुष कहते है।
- चतुर्थी तत्पुरुष – जिस तत्पुरुष समास के पूर्वपद में चतुर्थी विभक्ति हो उसे चतुर्थी तत्पुरुष कहते हैं।
- पंचमी तत्पुरुष– यदि तत्पुरुष समास के पूर्वपद में पञ्चमी विभक्ति हो तो उसे पञ्चमी तत्पुरुष कहते हैं।
- पष्ठी तत्पुरुष–जिस तत्पुरुष समास के पूर्वपद में पष्ठी विभक्ति हो उसे पष्ठी तत्पुरुष कहते है।
- सप्तमी तत्पुरुष– पूर्वपद में यदि सप्तमी विभक्ति हो तो सप्तमी तत्पुरुष कहते हैं|
कर्मधारय समास:
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विशेषणं विशेष्येण कर्मधारयः अर्थात विशेषण और विशेष्य (जिसकी विशेषता बताई जाए) का तथा उपमान (जिससे उपमा दी जाती है) और उपमेय (जिसकी उपमा दी जाती है) का जो समास होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
यूँ कहें तो हिंदी और संस्कृत व्याकरण में ज्यादा अंतर नहीं है बस भाषात्मक बदलाव जो की बहुत देखने को मिलता है , इसलिए संस्कृत मे समास को जानना ज्यादा आसान नहीं होता।
- नीलोत्पलम् (नीलं उत्पलम्-नीला कमल),
- चपलबालकः (चपलः बालकः – चंचल बालक)।
- सुंदरपुरुषः (सुंदर: पुरुषः – सुंदर पुरुष)
बहुव्रीहि समास:
अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिः अर्थात जिस समास में किसी पद ( पूर्व या पर) का अर्थ प्रधान न होकर किसी अन्य पद का अर्थ प्रधान होता हुआ प्रतीत हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की जिसकी, प्रधानता रहती है। जिसके यह आदि इसका विग्रह करने पर वाला है, जो जिसका, आते है।
- पीताम्बरः [पीतं अम्बरं यस्य असौ- पीत है अम्बर (वस्त्र) जिसका वह) अर्थात् विष्णु,
- चक्रपाणिः (चक्रं पाणी यस्य सः – चक्र है हाथ में जिसके, वह),
- महात्मा (महान् आत्मा यस्य सः – जिसकी आत्मा महान् हो, वह),
- निर्भयः (निर्गतं भयं यस्मात् सः – जिससे भय निकल गया हो, वह),
- महाशय (महान् आशयो यस्य सः – जिसका विचार महान् हो वह) ।
द्वन्द्व समास:
इतरेतर द्वन्द्व
इतरेतर द्वन्द्व में पदों के वचन के अनुसार ही वचन तथा अंतिम पद के लिंग के अनुसार ही समस्त पद का लिंग होता है। जैसे
- समः च लक्ष्मणः च रामलक्ष्मणौ (राम और लक्ष्मण)
- दिनं च रजनी च– दिनरजन्यौ (दिन और रात)
- हरिः च हरः च – हरिहरौ (हरि और हर)
- माता च पुत्रः च – मातापुत्रौ (माता और पुत्र)
समाहार द्वन्द्व
समाहार द्वन्द्व में दो या उससे अधिक पदों के समाहर (समूह, सम्मिलित रूप) का बोध होता है। प्राणी, बाघ और सेना के अंग-संबंधी शब्दों में समाहार द्वन्द्व होता है। समाहार द्वन्द्व एकवचनान्त और नपुंसक लिग होता है।
जैसे
- हस्तौ च पादौ च तेषाम् समाहारः- – हस्तपादम् (दोनों हाथ और दोनों पैर) –
- मृदंगः च पटहः च तयोः समाहारः – मृदंगपटहम् (मृदंग और नगाड़ा)
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