Sainik Ki Atmakatha Hindi Nibandh Best Nibandh | सैनिक की आत्मकथा हिंदी निबंध 600+ शब्द में

Sainik Ki Atmakatha Hindi Nibandh
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Sainik Ki Atmakatha Hindi Nibandh

हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई, हमवतन हमनाम है,
जो करे इनको जुदा मजहब नहीं इल्ज़ाम है ।
हम जिएंगे और मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए,
दिल दिया है, जां भी देंगे, ऐ वतन तेरे लिए ।।

मेरा नाम विकास है और मैं एक सैनिक हूँ। मेरा जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, जहां की गरीबी और संघर्ष का महौल था। मेरे परिवार में सेवानिवृत्ति के प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना थी, जिसका प्रभाव मुझ पर भी पड़ा। मेरे पिता स्वतंत्रता संग्राम के समय के सेना के एक समर्थ योद्धा थे और मेरी माँ एक समर्थ शिक्षिका थीं।

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मैं हवाओं से बातें करने वाला, पहाड़ों को अपना साथी मानने वाला, सीमा पर खड़ा पहरेदार हूँ – एक सैनिक। मेरी कहानी ना किसी राजा-महाराजा की है, ना किसी धनपति की, मगर ये हर उस नागरिक की कहानी है जो अपने देश के लिए जीता है, मिट्टी की खुशबू से सांस लेता है, और तिरंगे के रंगों में अपना स्वप्न देखता है।

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ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का

इस देश का यारों … होय!! इस देश का यारों क्या कहना

ये देश है दुनिया का गहना

मेरा बचपन गाँव की गलियों में, खेतों की हरियाली के बीच बीता। पिताजी की सेना की वर्दी मेरे लिए सम्मान का प्रतीक थी। उनके युद्ध के किस्से सुनते हुए, सीमा पर पहरेदारी करने का जुनून मेरे दिल में घर कर गया। स्कूल से निकलते ही सेना में भर्ती हो गया, जहाँ अनुशासन मेरा गुरु बना, वीरता मेरा साथी, और देशभक्ति मेरी सांस।

बचपन से ही मुझमें सेना में जाने की इच्छा थी। मैंने अपने लक्ष्य के प्रति पूरी शिद्दत और समर्पण से काम किया। अपने शैक्षिक और शारीरिक योग्यता को मजबूत करने के लिए मैंने सभी संभावित प्रयास किए।

एक दिन मेरा सपना साकार हुआ और मैंने सेना में भर्ती हो गया। सैन्य जीवन में मुझे समर्पित करने का एहसास अनूठा था। मैंने सीमावर्ती क्षेत्रों में जवानों की देखभाल की, सुरक्षा कार्यों में भाग लिया और देश की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित किया।

सेना में जीवन के दौरान मैंने बहुत सारे संघर्षों का सामना किया, लेकिन मेरे मन में देश के लिए सेवा करने का जज्बा हमेशा बना रहा। मेरी सेना में शामिल होने की गर्व की भावना हमेशा मेरे दिल में रहेगी।

नए-नए हथियार चलाना सीखा, युद्धकला में पारंगत हुआ। भाईचारे का बंधन इतना मजबूत बना कि दुश्मन सामने आने से पहले ही सिहर उठता था। पहाड़ों की चोटियों पर खड़े रहकर सूर्योदय का स्वागत किया, तारों की रोशनी में पहरा दिया। बर्फीली हवाओं से लड़ना सीखा, रेगिस्तान की लू को हंसकर झेला। हर कठिनाई मुझे और मजबूत बनाती गई।

युद्ध के मैदान की गर्मी को भूल नही पाता। गोलियों की ताली, विस्फोटों का धमाका, साथियों की शहादत, दिल को चीर देती थी। मगर देश के सम्मान की रक्षा, हर नागरिक की मुस्कान, मेरी ताकत बनती थी। दुश्मन को धूल चटाना, सीमा को अतिक्रमण से बचाना, मेरे कर्तव्य का धर्म था।

युद्ध खत्म हो गया, मगर पहरेदारी जारी है। जहाँ भी देश को जरूरत होती है, हम वहीं डटे रहते हैं। बाढ़ में राहत पहुँचाना, आपदा में मदद का हाथ बढ़ाना, हमारे कर्तव्य की एक और पहलू है।

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कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों     

सेना में बिताए वर्षों में मैंने अपने देश के लिए समर्पित जीवन का आनंद लिया। मेरे लिए सेना ही मेरी शान और गर्व का प्रतीक है। मैं गर्व से कह सकता हूँ कि मैंने अपने देश की सेवा में सच्ची भावना से समर्पित जीवन बिताया है।

मेरा देश मेरा नाम है, मेरा कर्तव्य मेरी पहचान। ये वर्दी सिर्फ कपड़ा नहीं, देश के सम्मान का प्रतीक है। जब तक खून में सांस है, तब तक सीमा पर डटा रहूँगा, भारत माता की जय बोलता रहूँगा।

यह थी मेरी आत्मकथा, जिसमें सेना में सेवा करने के अनुभवों को व्यक्त किया गया है। मैं सदैव अपने देश की सेवा में समर्पित रहूँगा और अपने देश को समृद्धि और सुरक्षा के मार्ग पर आगे बढ़ाने का प्रयास करता रहूँगा।

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