जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशेष पर्व है. यह यात्रा भगवान जगन्नाथ मंदिर से चलकर उनके रथो में उन्हे उनके बनाए गए गंगा किनारे के स्थान तक लेकर जाती है.
Jagannath Puri Rath Yatra Story In Hindi
इस पर्व की शुरुआत रथ यात्रा के पहले दिन से होती है, जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के मूर्तियाँ उनके मंदिर से रथ में स्थापित की जाती हैं। इसके बाद ये रथ बड़ी धूमधाम से रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
रथ यात्रा में लाखों लोग शामिल होते हैं, जो भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ को खींचने में भाग लेते हैं। यह पर्व भगवान के भक्तों के लिए बड़ी महत्वपूर्ण है और इसे भगवान जगन्नाथ की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
रथ यात्रा के दौरान लोग भगवान के रथ के पीछे गाते-गाते उनकी आराधना करते हैं और उनकी महिमा गाते हैं। यह पर्व भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यकारी होता है और विभिन्न संस्कारों और धार्मिक आधारों पर आधारित है।
जगन्नाथ रथ यात्रा के पीछे की कहानी क्या है?
जगन्नाथ रथ यात्रा की कहानी विशेष और महत्वपूर्ण है। इसका महत्व पुराने कथाओं और पुराणों में विस्तार से वर्णित है।
कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय शिष्य और मित्र अर्जुन से कहा था कि वो प्रेम और सेवा की भावना से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को अपने भवन में ले आएं। अर्जुन ने भगवान की इस वाणी का अनुसरण किया और उन्होंने पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को अपने घर ले आया। लेकिन अर्जुन के घर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति ने रात्रि में स्वयं को देखने का अवसर दिया और उन्होंने देखा कि वे पुरी वापस जा रहे हैं।
इसके बाद यह परंपरा शुरू हुई कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ प्रति वर्ष अपने मंदिर से उनके रथ में स्थापित की जाएंगी और वे इस रथ के माध्यम से अपने भक्तों के बीच यात्रा करेंगे। यह रथ यात्रा भगवान के अपने प्रिय भक्तों के लिए एक विशेष दर्शन है और इसे देखने वालों को बड़ा ही पुण्य प्राप्त होता है।
जगन्नाथ रथ के सारथी कौन है?
महाप्रभु जगन्नाथ के रथ के सारथी दारूक होते हैं और संरक्षक गरुड़ होते हैं। दारूक रथ को खींचने के लिए अद्वितीय भक्तिभाव से सेवा करते हैं, जबकि गरुड़ रथ की सुरक्षा और संरक्षण का ध्यान रखते हैं।
जगन्नाथ रथ के सारथी कौन हैं, यह प्रश्न अद्वितीय है क्योंकि इस पर्व के अनुसार रथ के सारथी भगवान श्रीकृष्ण के समान माने जाते हैं। रथ यात्रा में रथ को खींचने का सौभाग्य भगवान के भक्तों को मिलता है और इसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लोग भाग लेते हैं।
क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा?
जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन मुख्य रूप से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के मंदिर में किया जाता है। यह यात्रा वार्षिक रूप से अनुस्मारक रूप में की जाती है, जिसमें भगवान के मूर्तियाँ उनके मंदिर से उनके रथ में स्थापित की जाती हैं। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान के अपने भक्तों के बीच राजत्व प्रस्थापित करना होता है और उन्हें भगवान के दर्शन का अवसर प्रदान करना होता है। यह परंपरा सालाना आयोजन है जो हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखती है।
जगन्नाथ जी की पत्नी कौन है?
भगवान जगन्नाथ की पत्नी कौन हैं? पुरी में देवी महालक्ष्मी भगवान जगन्नाथ की शाश्वत पत्नी हैं, जिन्हें यहाँ भगवान विष्णु के पुरुषोत्तम रूप के रूप में पूजा जाता है। उनके मंदिर के नाम से लेकर उनके पवित्र निवास नीलाचल तक, हर जगह “श्री” शब्द जुड़ा हुआ है, जो जगन्नाथ महाप्रभु के साथ देवी महालक्ष्मी के शाश्वत बंधन जैसा है।
जगन्नाथ जी किस के अवतार है?
जगन्नाथ जी को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के एक प्रसिद्ध अवतार के रूप में माना जाता है। विष्णु पुराणों में इसे ‘पुरुषोत्तम’ कहा गया है, जोकि भगवान विष्णु का सर्वोच्च रूप है। जगन्नाथ का संबंध विशेष रूप से उनके अवतार ‘कल्पवृक्ष’ से होता है, जो हिन्दू धर्म में अद्वितीयता और स्थायित्व का प्रतीक माना जाता है।
वेदों के अनुसार, भगवान विष्णु ने जगन्नाथ के रूप में अपना अवतार प्रकट किया था ताकि वे अपने भक्तों को अपनी अनंत रहमत और प्रेम से आशीर्वाद दे सकें। इसी कारण से भगवान जगन्नाथ के मंदिरों में उन्हें भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है, जहां उन्हें ‘कल्पवृक्ष’ के संदर्भ में भी देखा जाता है, जो अपने भक्तों के लिए सदैव फलदायी होता है।
क्या कृष्ण और जगन्नाथ एक ही हैं?
कृष्ण:
- परिचय: कृष्ण हिंदू धर्म के विष्णु के अवतारों में से एक हैं। उन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है।
- जीवन और लीलाएं: कृष्ण के जीवन की अनेक कथाएं हैं, जैसे बाल लीलाएं, माखन चुराना, गोपियों के साथ रासलीला, अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश देना आदि।
- पूजा और मंदिर: कृष्ण की पूजा मुख्यतः वृंदावन, मथुरा और द्वारका में की जाती है। उनके मंदिरों में उनकी बाल रूप (बालकृष्ण) से लेकर युवावस्था (राधा-कृष्ण) तक की प्रतिमाएं होती हैं।
जगन्नाथ:
- परिचय: जगन्नाथ भी विष्णु के अवतार माने जाते हैं, लेकिन उनका रूप और पूजा का तरीका कुछ अलग है। उनका प्रमुख मंदिर ओडिशा के पुरी में स्थित है।
- रूप: जगन्नाथ का रूप मुख्यतः काष्ठ (लकड़ी) से बना होता है और उनके बड़े-बड़े गोल नेत्र होते हैं। उनके साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां भी होती हैं।
- रथ यात्रा: जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त भाग लेते हैं और भगवान को विशाल रथों में बिठाकर नगर के चारों ओर घुमाते हैं।
पुरी जगन्नाथ मंदिर की छाया क्यों नहीं है?
संभावित कारण:
वास्तुशिल्प:
- जगन्नाथ मंदिर की बनावट और ऊँचाई ऐसी है कि यह संभव है कि छाया विशेष कोण पर ही दिखाई दे, जो सामान्य दृष्टि से आसानी से नहीं देखी जा सकती।
- मंदिर का गुम्बद और अन्य संरचनाएं इस प्रकार से बनाई गई हैं कि दिन के किसी भी समय उसकी छाया ज़मीन पर स्पष्ट रूप से नहीं दिखती।
सूर्य की दिशा:
- ओडिशा में सूर्य की दिशा और कोण भी इस स्थिति में योगदान कर सकते हैं। दिन के अलग-अलग समय पर सूर्य की स्थिति और मंदिर की संरचना के बीच का संबंध इस प्रकार हो सकता है कि छाया मंदिर की दीवारों पर ही पड़ती हो और ज़मीन तक न पहुँच पाती हो।
धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण:
- कुछ लोगों का मानना है कि यह भगवान जगन्नाथ की दिव्यता का प्रतीक है और इसे एक चमत्कार के रूप में देखा जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
विज्ञान और वास्तुकला के दृष्टिकोण से देखा जाए तो, किसी भी वस्तु या संरचना की छाया सूर्य की दिशा, ऊंचाई, और संरचना की डिजाइन पर निर्भर करती है। यदि मंदिर की डिजाइन और उसकी ऊँचाई इस प्रकार हो कि सूर्य की किरणें सीधे जमीन पर छाया न बना सकें, तो यह एक तकनीकी कारण हो सकता है।
FAQ’s
जगन्नाथ पुरी से गंगासागर की दूरी ?
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जगन्नाथ पुरी कब बंद रहता है ?
वैसे तो हर महीने की पूर्णिमा खास है लेकिन ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा अधिक महत्वपूर्ण होती है. इस दिन भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम गृर्भग्रह से बाहर आते हैं और पूर्णिमा पर उन्हें सहस्त्र स्नान कराया जाता है. फिर शाम को श्रंगार के बाद 15 दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं.
रथ यात्रा कब है ?
7 जुलाई से उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने जा रही है. हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से इस रथ यात्रा का आयोजन होता है. इस दौरान भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर विराजते हैं