Friendship Quotes in Sanskrit
(Friendship Quotes in Sanskrit, SANSKRIT QUOTES ON FRIENDSHIP, मित्रता पर संस्कृत श्लोक | friendship day quotes ) भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। आज कल इस सम्बन्ध हेतु लोग मित्रता दिवस (Friendship Day) भी मनाते हैं। जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण सुदामा मित्रता की मिसाल देना नहीं भूलते।
आढ् यतो वापि दरिद्रो वा दुःखित सुखितोऽपिवा ।
निर्दोषश्च सदोषश्च व्यस्यः परमा गतिः ॥
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इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी के पास बहुत पैसा है या नहीं, वह खुश है या दुखी है, या उसने कुछ गलत या सही किया है – एक दोस्त का होना किसी व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण सहारा है।
न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु: ।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा ।।
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लोग स्वतः ही एक-दूसरे के मित्र या शत्रु नहीं बन जाते। यह उनका एक-दूसरे के प्रति व्यवहार करने का तरीका है जो यह निर्धारित करता है कि वे दोस्त बनेंगे या दुश्मन।
विवादो धनसम्बन्धो याचनं चातिभाषणम् ।
आदानमग्रतः स्थानं मैत्रीभङ्गस्य हेतवः॥
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वाद-विवाद, धन के लिये सम्बन्ध बनाना, माँगना, अधिक बोलना, ऋण लेना, आगे निकलने की चाह रखना – यह सब मित्रता के टूटने में कारण बनते हैं।
न गृहं गृहमित्याहुः गृहणी गृहमुच्यते।
गृहं हि गृहिणीहीनं अरण्यं सदृशं मतम्।
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घर तो गृहणी (घरवाली) के कारण ही घर कहलाता है। बिन गृहणी तो घर जंगल के समान होता है।
तावत्प्रीति भवेत् लोके यावद् दानं प्रदीयते ।
वत्स: क्षीरक्षयं दृष्ट्वा परित्यजति मातरम्||
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लोगों का प्यार तभी तक रहता है जब तक उन्हें किसी से फायदा हो सकता है। एक बार जब गाय के बच्चे को अपनी मां के दूध की जरूरत नहीं रह जाएगी, तो वह उसके साथ रहना बंद कर देगी।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
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मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।
माता मित्रं पिता चेती स्वभावात् त्रतयं हितम्।
कार्यकारणतश्चान्ये भवन्ति हितबुद्धयः।।
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माता-पिता और दोस्त हमारी परवाह करते हैं और चाहते हैं कि हमारे लिए सबसे अच्छा क्या हो, लेकिन अन्य लोग आमतौर पर केवल अपनी परवाह करते हैं।
विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गॄहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मॄतस्य च।।
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प्रवास में विद्या मित्र होती है (अर्थात घर से दूर रहने पर विद्या मित्र समान होती है ), घर में पत्नी मित्र होती है, रोग में औषधि मित्र होती है और मृतक का मित्र धर्म होता है(अर्थात मृत्यु के समय धर्म मित्र समान है)।