Anupras Alankar :- अलंकार की परिभाषा, भेद और उदाहरण
अनुप्रास अलंकार को शब्दों की वह विशेषता कहा जाता है जिसमें दो या दो से अधिक शब्दों का ध्वनि भिन्न होता है लेकिन उनका अर्थ समान रहता है। इसे अनुप्रास अलंकार कहा जाता है।
परिभाषा: अनुप्रास अलंकार में वे शब्दों का उपयोग किया जाता है जिनका अर्थ एक समान होता है, परन्तु उनका ध्वनि भिन्न होता है। इससे कविता में रस, छंद, और अलंकार की विविधता बढ़ जाती है और पठकों को भावनाओं को समझने का नया तरीका मिलता है।
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Anupras Alankar Ke Bhed – (अलंकार के भेद)
अनुप्रास अलंकार के कई भेद होते हैं, जो कि विभिन्न प्रकार की रचनाओं में प्रयोग किए जाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख अनुप्रास अलंकार के भेद दिए जा रहे हैं:
1. तत्सम-तद्भव अनुप्रास: इसमें दो या दो से अधिक शब्दों का अनुप्रास होता है, जो कि तत्सम या तद्भव शब्दों पर आधारित होता है। उदाहरण के लिए, “मनमोहक मुस्कान”।
2. संधि अनुप्रास: इसमें अनुप्रास दो अलग-अलग शब्दों के संधि से होता है। उदाहरण के लिए, “आदर्श + आत्मा = आदर्शात्मा”।
3. स्थानीय अनुप्रास: इसमें शब्दों का अनुप्रास उनके स्थान के आधार पर होता है। उदाहरण के लिए, “श्याम काव्य मधुर है”।
4. वृत्तयः प्रथमोद्धाते: इसमें अनुप्रास दो शब्दों के प्रथम उत्थान में होता है। उदाहरण के लिए, “पर्वत पुंज के”।
5. तद्धित अनुप्रास: इसमें दो शब्दों का अनुप्रास तद्धित प्रत्यय से होता है। उदाहरण के लिए, “चाँदनी चाँदनी”।
ये थे कुछ मुख्य अनुप्रास अलंकार के भेद, जो कि हिंदी साहित्य में उपयोग में आते हैं।
Anupras Ke Udaharan (अनुप्रास अलंकार के उदाहरण)
बजी बजाय बंसी – यहाँ “बजी” और “बजाय” में अनुप्रास है।
संगीत सुनते ही सब दुःख भूल गए – इसमें “संगीत” और “सुनते” में अनुप्रास है।
चाँदनी रात में चाँदनी तेरे ख्वाब में – यहाँ “चाँदनी” और “चाँदनी” में अनुप्रास है।वह आया, देखा, और चला गया – इसमें “आया” और “देखा” में अनुप्रास है।
राधा के गोरे हाथ में बसंती माला – यहाँ “गोरे” और “बसंती” में अनुप्रास है।