बच्चों के लिए हनुमान जी की 10 अद्भुत कहानियां

          हनुमान जी, जिन्हें पवन पुत्र और बजरंग बली के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय पौराणिक कथाओं के सबसे प्रिय और आदरणीय पात्रों में से एक हैं। उनकी जीवनगाथा और वीरता से भरी कहानियाँ सदियों से जनमानस में रची-बसी हैं। इस पुस्तक में, हमने उनकी अद्वितीय शौर्य, भक्ति और बलिदान की कहानियों को संकलित किया है, जो न केवल बच्चों बल्कि वयस्कों के लिए भी प्रेरणादायक हैं।

हनुमान जी का जन्म

This Image Discribe The Birth of Hnuman ji

         बहुत समय पहले, एक सुंदर पहाड़ी के पास अंजना नाम की एक बंदरिया रहती थी। वह बहुत ही सुंदर और दयालु थी। अंजना की शादी केसरी नाम के एक शक्तिशाली वानर से हुई थी।    एक दिन, अंजना भगवान शिव की पूजा कर रही थी और उनसे प्रार्थना कर रही थी कि उन्हें एक विशेष पुत्र प्राप्त हो। भगवान शिव उनकी भक्ति से प्रभावित हुए और उन्होंने वरदान दिया कि अंजना को एक वीर और शक्तिशाली पुत्र प्राप्त होगा।
         उसी समय, अयोध्या में राजा दशरथ यज्ञ कर रहे थे ताकि उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो। यज्ञ के फलस्वरूप, राजा दशरथ को पवित्र खीर मिली। उन्होंने खीर के हिस्से अपने तीनों रानियों को दिए, और कुछ हिस्सा आकाश में उड़ गया। यह पवित्र खीर अंजना के पास पहुँच गया और उन्होंने इसे ग्रहण किया।
        

          अंजना ने कुछ महीनों बाद एक सुंदर और बलवान पुत्र को जन्म दिया। वह पुत्र हनुमान थे। हनुमान बचपन से ही बहुत बलवान और चतुर थे। उनकी पूँछ लंबी और मजबूत थी, और वे बहुत ऊँचाई तक कूद सकते थे।
          एक दिन, हनुमान ने एक सुनहरा फल देखा और उसे खाने के लिए सूरज की तरफ छलांग लगाई। भगवान इंद्र ने उन्हें रोकने के लिए अपने वज्र से वार किया। हनुमान बेहोश हो गए और उनकी ठोड़ी (हिंदी में हनु) में चोट लगी। इसलिए उनका नाम हनुमान पड़ा।
हनुमान ने बचपन में बहुत सारी शरारतें कीं, लेकिन वे हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते थे। वे भगवान राम के परम भक्त बन गए और उनके साथ कई अद्भुत कारनामे किए।
हनुमान की कहानी हमें सिखाती है कि हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए और अपनी शक्तियों का उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करना चाहिए। हनुमान की भक्ति और साहस बच्चों के लिए एक प्रेरणा है।

Also Read – Slokas for Kids

हनुमान जी ने कैसे पाई अपनी अद्भुत ताकत

         एक बार की बात है, अंजनी माता और केसरी नाम के वानरराज के घर एक छोटे से बालक का जन्म हुआ। इस बालक का नाम हनुमान रखा गया। हनुमान बहुत ही प्यारे और नटखट थे।
         जब हनुमान छोटे थे, तो वे बहुत खेल-कूद करते थे और अपने दोस्तों के साथ मस्ती करते थे। एक दिन, हनुमान को बहुत भूख लगी थी। उन्होंने आकाश में चमकते सूरज को देखा और सोचा कि वह एक बड़ा सा फल है। हनुमान ने सूरज को खाने की सोची और झट से ऊँचे-ऊँचे आसमान में छलांग लगा दी।
         सूरज की तरफ उड़ते हुए हनुमान जी को रास्ते में राहू मिला। राहू सूर्य को ग्रहण लगाने जा रहा था। हनुमान ने राहू को भी बड़ा फल समझा और पकड़ने की कोशिश की। राहू डर गया और भाग कर इंद्र देव के पास गया।

          इंद्र देव ने यह सब देखकर अपने वज्र से हनुमान को मारा। वज्र की चोट से हनुमान बेहोश होकर गिर पड़े। यह देखकर उनकी माता अंजनी बहुत दुखी हो गईं और सभी देवताओं से प्रार्थना की। सभी देवता आए और हनुमान को बहुत सारी शक्तियाँ और आशीर्वाद दिए। ब्रह्मा जी ने उन्हें कोई भी अस्त्र-शस्त्र से अजेय होने का वरदान दिया, विष्णु जी ने उन्हें कभी न मरने का आशीर्वाद दिया, और इंद्र देव ने अपने वज्र से शक्ति और साहस का वरदान दिया।
        शिवजी ने भी हनुमान को अपने त्रिशूल से सुरक्षा का वरदान दिया और वरुण देव ने उन्हें जल में भी ताकतवर रहने का आशीर्वाद दिया। इन सभी वरदानों के कारण हनुमान बहुत ही शक्तिशाली हो गए।
        इस तरह, हनुमान जी ने अपनी अद्भुत ताकत पाई और वे भगवान राम के सबसे प्रिय भक्त और साहसी योद्धा बन गए।

हनुमान जी और भगवान राम की दोस्ती

         प्राचीन समय में, एक बहुत ही प्यारा और बलवान वानर था जिसका नाम हनुमान था। हनुमान भगवान शिव का अवतार थे और उन्हें अपार शक्ति और चतुराई मिली थी।
एक दिन, भगवान राम, जो अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे, अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे। तभी लंका के राजा रावण ने सीता माता का अपहरण कर लिया। भगवान राम और लक्ष्मण सीता माता को ढूंढने के लिए जंगल में भटक रहे थे।
उन्हीं दिनों, हनुमान अपने राजा सुग्रीव की सेवा में थे। सुग्रीव और भगवान राम की मित्रता हो गई, और हनुमान भी भगवान राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति से भर गए।

         हनुमान जी ने भगवान राम और लक्ष्मण से मिलकर प्रणाम किया और कहा, “हे प्रभु, मैं आपकी सेवा में हाजिर हूँ। मैं आपकी हर संभव मदद करूंगा।” भगवान राम ने हनुमान को अपने गले से लगाया और आशीर्वाद दिया।
        हनुमान जी ने अपने साथियों के साथ मिलकर सीता माता को ढूंढने का निश्चय किया। वे अपने वानर मित्रों के साथ लंका की ओर चल पड़े। रास्ते में उन्होंने अपने साहस और बुद्धिमानी से कई कठिनाइयों का सामना किया।
        हनुमान जी ने अपनी अद्भुत शक्ति और उड़ने की क्षमता से समुद्र पार किया और लंका पहुंचे। वहां उन्होंने सीता माता को अशोक वाटिका में देखा। हनुमान जी ने सीता माता को भगवान राम का संदेश दिया और उन्हें धैर्य बंधवाया । हनुमान जी ने लंका में कई चमत्कारी काम किए और रावण के दरबार में जाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। रावण ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की, लेकिन हनुमान जी ने अपनी पूंछ से लंका को जलाकर भगवान राम की वीरता का परिचय दिया।

          जब हनुमान जी लौटकर भगवान राम के पास पहुंचे और उन्हें सीता माता का समाचार दिया, तो भगवान राम ने हनुमान को गले लगाकर धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, “हनुमान, तुमने जो किया है, वह अविश्वसनीय है। तुम्हारी भक्ति और साहस को मैं सदा याद रखूंगा।”
इस तरह, हनुमान और भगवान राम की दोस्ती अमर हो गई। हनुमान जी ने भगवान राम की सहायता से रावण का वध किया और सीता माता को सुरक्षित वापस लाने में सफल हुए। हनुमान जी की भगवान राम के प्रति भक्ति और निस्वार्थ सेवा को हम आज भी याद करते हैं।

हनुमान जी की सीता को खोजने की यात्रा

          प्राचीन समय की बात है, जब भगवान राम की पत्नी, सीता, रावण नाम के राक्षस राजा द्वारा अपहरण कर ली गई थी। भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण, सीता को ढूंढने के लिए बहुत चिंतित थे। उन्होंने अपनी सेना के साथ वन-वन घूमकर सीता की खोज शुरू की।
हनुमान, जो भगवान राम के बहुत बड़े भक्त और वानर सेना के नेता थे, ने इस कठिन काम को अपने ऊपर लिया। उन्होंने समुद्र को पार करके लंका पहुँचने का संकल्प लिया, जहाँ रावण ने सीता को कैद करके रखा था।
          हनुमान ने अपनी पूंछ को बड़ा किया और समुद्र के ऊपर एक विशाल छलांग लगाई। हवा में उड़ते हुए, उन्होंने पर्वतों, नदियों और जंगलों को पार किया। समुद्र के पार पहुँचते ही, उन्होंने लंका नगरी को देखा।

          लंका पहुँचकर, हनुमान ने रावण के महल में घुसपैठ की। उन्होंने अपने छोटे रूप का इस्तेमाल किया ताकि वे बिना किसी को दिखे महल में जा सकें। महल के अंदर, उन्होंने सीता माता को एक बगीचे में कैद देखा।
        हनुमान ने सीता माता को भगवान राम का संदेश सुनाया और उन्हें ढाँढस बँधाया। सीता माता ने हनुमान को अपनी एक अंगूठी दी,ताकि वह भगवान राम को दिखाकर यह पुष्टि कर सकें कि उन्होंने सीता को खोज लिया है।
       फिर, हनुमान ने अपनी पूंछ से लंका को जलाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पूंछ को आग से जलाया और पूरी लंका नगरी में आग लगा दी। इसके बाद, वे वापस भगवान राम के पास लौट आए और उन्हें सीता माता की खोज के बारे में बताया।इस तरह, हनुमान की बहादुरी और निष्ठा के कारण, भगवान राम को सीता माता का पता चला और उन्होंने रावण के खिलाफ युद्ध की तैयारी शुरू की। हनुमान की इस साहसिक यात्रा ने यह सिखाया कि जब हम सच्चे मन से किसी का भला करने की ठान लेते हैं, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।

हनुमान जी की जादुई पूंछ और सोने का महल

         बहुत समय पहले की बात है, हनुमान भगवान राम के सबसे बड़े भक्त थे। जब माता सीता को रावण ने लंका में बंदी बना लिया था, तब हनुमान उन्हें ढूंढने के लिए लंका पहुंचे।
हनुमान जी की पूंछ बहुत लंबी और मजबूत थी। वे जब लंका के सोने के महल में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां बहुत सारे राक्षस पहरा दे रहे थे। हनुमान जी ने सोचा, “मुझे माता सीता को बचाना है, लेकिन पहले मुझे इन राक्षसों से निपटना होगा।”
         हनुमान जी ने अपनी पूंछ का जादू दिखाया। उन्होंने अपनी पूंछ को लंबा करके सभी राक्षसों को बांध दिया। वे इतने शक्तिशाली थे कि सभी राक्षस उनकी पूंछ से छूट नहीं सके। फिर हनुमान जी ने सोने के महल में आग लगा दी ताकि रावण को सबक सिखाया जा सके।

        महल जलने लगा और राक्षस डरकर भागने लगे। हनुमान जी ने अपने जादुई पूंछ की मदद से माता सीता का पता लगाया और उन्हें भगवान राम का संदेश दिया।
       माता सीता ने हनुमान जी को आशीर्वाद दिया और हनुमान जी वापस भगवान राम के पास चले गए। उन्होंने राम जी को सारी बातें बताई और फिर भगवान राम ने माता सीता को बचाने के लिए लंका पर चढ़ाई की।
       इस प्रकार, हनुमान जी की जादुई पूंछ और उनकी बहादुरी ने भगवान राम और माता सीता की मदद की। बच्चों, इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सच्ची भक्ति और साहस से हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है।

हनुमान जी और संजीवनी वन

           हनुमान जी एक बड़े और शक्तिशाली वानर थे। उनका मन भगवान राम की सेवा में ही लगा रहता था। राम जी के साथ उनकी बहुत बिनती थी। राम जी की पत्नी सीता को रावण ने अपहरण कर लिया था। उसे वापस लाने के लिए राम जी, हनुमान और उनके सेना सहित भयंकर संघर्ष कर रहे थे।
        बिच मेघनाथ ने चुप के से राम जी के भाई लक्ष्मण जी को तीर मारा ब्रह्मा अस्त्र , बाण का प्रयोग कर मुर्च्छित कर दिया था एक दिन,जब लंका में लड़ाई चल रही थी, मेघनाथ ने चुप के से लक्ष्मण जी ब्रह्मा अस्त्र , बाण का प्रयोग कर मुर्च्छित कर दिया था । उनकी चिंता में राम जी ने हनुमान से कहा,”हनुमान,लक्ष्मण को बचाने के लिए संजीवनी वन से संजीवनी बूटी ले आओ।”

         हनुमान ने वीरता और निष्ठा के साथ संजीवनी वन की ओर रुख किया। वहां पहुँचकर उन्होंने वन में खोज की, और अंत में संजीवनी वन की एक विशेष जड़ी-बूटी पाई। वह उसे लेकर फिर लंका की ओर लौट आए।
         हनुमान ने अपनी बड़ी ताकत और स्वार्थ के बजाय भगवान राम की सेवा में इस प्रकार से लक्ष्मण को बचाया। इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सच्चे सेवक वो होते हैं जो अपने स्वार्थ को भूलकर दूसरों की सेवा में लगे रहते हैं।

हनुमान जी और सुग्रीव की मित्रता

            हनुमान और सुग्रीव की मित्रता बच्चों के लिए बहुत ही रोमांचक कहानी है।
एक बार की बात है, जब राम और लक्ष्मण जनकपुरी में रानी सीता को ढूंढने निकले थे। राम और लक्ष्मण वन में बहुत दिनों से भटक रहे थे। उन्हें पूरी कोई मार्गदर्शन नहीं मिल रहा था।
तभी एक दिन, राम और लक्ष्मण हनुमान से मिले। हनुमान बड़े भोले-भाले और बहुत ही शक्तिशाली थे। वे राम और लक्ष्मण की सहायता करने को तत्पर थे। राम ने हनुमान से कहा, “हे हनुमान, हमें रानी सीता को खोजने में मदद करो।”

           हनुमान ने राम की बात सुनकर बड़े ही उत्साह से कहा, “जी हां, प्रभु । मैं आपकी सेवा में हमेशा तत्पर रहूंगा।”हनुमान ने राम और लक्ष्मण को सुग्रीव नामक वानरराज के पास ले जाया। सुग्रीव भी बहुत ही विशालकाय और बहादुर थे। उन्होंने राम और लक्ष्मण की मदद का वादा किया।
          हनुमान ने सुग्रीव की मदद से राम को उनकी मित्रता का प्रमाण दिखाया। सुग्रीव और हनुमान ने मिलकर रावण के संसार में रानी सीता को खोजने में राम की मदद की। इस प्रकार, हनुमान और सुग्रीव की अद्वितीय मित्रता ने राम को उनकी पत्नी सीता को वापस पाने में मदद की और उन्हें अपनी बलि पर विजय प्राप्त करने में सहायक बनी।

हनुमान जी और जटायु की कहानी

            त्रेता युग में जब रावण माता सीता का हरण कर के लंका ले जा रहा थ।  उस समय जटायु नाम के एक गरुड़ ने रावण को रोकने की कोशिश की और उससे युद्ध भी किया।  रामायण में जटायु के साथ साथ उनके भाई संपाती  का भी ज़िक्र किया गया है। जब जटायु रावण से लड़ ररहे थे तभी उस लड़ाई में रावण ने जटायु के पंख काट दिए और जटायु नीचे गिर गए ।  जटायु जोर जोर से आवाज लगाने लगा। जटायु की आवाज सुन केर राम और लक्समन जटायु के पास पहुंचे , जटायु ने पूरी कहानी राम और लक्समन को बताई की कैसे रावण ने माता सीता का हरण क्र वो उन्हें लंका ले गया।
         बहुत समय बाद जब हनुमानजी, अंगद, जांबवंत और अन्य वानर सीता की खोज में दक्षिण दिशा में आगे बढ़ रहे थे। तब उनकी भेंट संपाती से हुई।हनुमानजी और जांबवंत ने जटायु की मृत्यु का समाचार संपाती को दिया था। संपाती की दूर नजर बहुत तेज थी। उसने वहीं से समुद्र पार लंका में सीता को देख लिया था और हनुमानजी, अंगद, जांबवंत को बताया था कि सीता लंका में ही है। इसके बाद हनुमानजी देवी सीता की खोज में लंका पहुंचे। इस तरह जटायु ने माता सीता की खोज में अपना योगदान दिया।

राम सेतु की कहानी

In This Image Describe The Ram setu

          जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास में थे। उनके वनवास के दौरान, दण्डक वन में उनके साथ बहुत सारे वानर भक्त भी थे। एक दिन, रावण ने सीता माता को अपहरण कर लिया। राम और लक्ष्मण ने उसको ढूंढने के लिए बहुत सारे वानर साथी को संगठित किया।

           श्री राम जी ने हनुमान से कहा की लंका जाने के लिए इस समुद्र पर पूल बनाna पड़ेगा हनुमान जी ने फिर भारत और लंका के बीच एक महान सेतु बांध दिया। इस सेतु को हम आज भी “राम सेतु” कहते हैं। इस सेतु ने भारत और लंका को जोड़ा और राम के भक्तों ने सुरक्षा की। इसी तरह से, भगवान राम ने सबके लिए एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया कि भक्ति, समर्पण और साहस से किसी भी कार्य को संभव किया जा सकता है

          वहां पहुंचकर उन्होंने लंका को घेर लिया और रावण के महल में घुस आए। फिर राम ने अपनी वानर सेना के साथ लंका पर विजय प्राप्त की और रावण को मार गिराया।
इस तरह श्री राम जी हनुमान जी की सहायता से राम सेतु का निर्माण केर के माता सीता को लंका से छुड़ा केर वापस ले आये ,और रावणका वध क्र दिया और असत्य पर सत्य की जीत हु।

महाभारत युद्ध में हनुमान जी की भूमिका

          महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था। पांडवों में से एक थे भीम, जो बहुत ही बलवान थे। भीम के पिता वायु देवता थे और हनुमान जी भी वायु देवता के पुत्र थे, इसलिए हनुमान जी और भीम भाई थे।जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था, तो अर्जुन ने हनुमान जी से मदद मांगी। अर्जुन ने हनुमान जी से कहा कि वे उनके रथ के ऊपर विराजमान हों और उनकी रक्षा करें। हनुमान जी ने अर्जुन की बात मानी और वचन दिया कि वे उनके रथ के ऊपर ध्वज के रूप में विराजमान रहेंगे।

          हनुमान जी का रथ पर विराजमान होना अर्जुन और पांडवों के लिए बहुत शुभ साबित हुआ। उनकी उपस्थिति से अर्जुन का रथ बहुत शक्तिशाली हो गया और कोई भी दुश्मन उन्हें हानि नहीं पहुँचा सका। हनुमान जी ने अपने दिव्य शक्ति से अर्जुन की रक्षा की और उनकी जीत सुनिश्चित की।

           इसके अलावा, हनुमान जी ने भीम को भी सलाह दी थी कि वे अहंकार न करें और धैर्यपूर्वक युद्ध करें। हनुमान जी की यह सलाह भीम के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई और उन्होंने अपने भाई के रूप में हनुमान जी का सम्मान किया। इस प्रकार, महाभारत के युद्ध में हनुमान जी ने अपनी भूमिका निभाई और पांडवों की विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी उपस्थिति ने पांडवों को बल और साहस दिया और उन्होंने अपनी भक्ति और शक्ति से अपने भक्तों की रक्षा की।

FAQ's

Frequently Asked Questions

हनुमान जी को किसकी पूजा में विशेष मान्यता है?

हनुमान जी को विशेष रूप से भगवान राम की पूजा में मान्यता प्राप्त है। वे भगवान राम के परम भक्त हैं और रामायण में उनकी भक्ति और साहस की कई कथाएँ हैं।

हनुमान जी की सबसे प्रसिद्ध कथा रामायण में वर्णित है, जिसमें उन्होंने लंका पर आक्रमण किया और सीता माता को बचाने के लिए राक्षसों से युद्ध किया। उन्होंने अपनी शक्ति और वीरता से भगवान राम की सहायता की।

हनुमान जी को अद्वितीय शक्तियों का वरदान मिला था, जिसमें वे उड़ सकते थे, अपनी आकार को बढ़ा सकते थे, और अपार बल और साहस का प्रदर्शन कर सकते थे। उन्होंने कई बार अपनी शक्तियों का उपयोग भगवान राम की सहायता के लिए किया।

हनुमान जी का प्रिय प्रसाद क्या है?

हनुमान जी को विशेष रूप से चने और गुड़ का प्रसाद पसंद है। भक्त इन खाद्य पदार्थों को उनकी पूजा के दौरान अर्पित करते हैं।

Leave a Comment