Nadi Ki Atmakatha

मैं सदियों का सफर हूँ, पहाड़ों से निकलती धारा। धूप में चमकती, हवा में गाती, कभी शांत कभी उफनती धारा। 

पहाड़ों की गोद में जन्म, हिमालय की बर्फ़ का प्यार। छोटी बूंदों का संगम, नन्हीं धारा का इकरार। 

घाटियों को चीरती जाती, गांवों को सींचती जाती। खेतों को हरा करती, प्यास बुझाती जाती। 

कभी मस्ती से कलकल करती, कभी गुस्से से गरजती। प्रकृति का संगीत सुनाती, जीवन का पाठ पढ़ाती। 

मंदिरों के चरण धोती, शहरों को जीवन देती। समुद्र से मिलने का सपना, धारा बड़ी हो, फिर भी छोटी। 

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